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सुनै सदा चाहे न कुछ / हनुमानप्रसाद पोद्दार

सुनै सदा चाहे न कुछ, सहै सबै जो होय।
रहै एक-रस एक-मन प्रेम कहावत सोय॥
तन-मन-धन-‌अर्पण कियौ सब तुम पै ब्रजराज।
मन भावै सो‌ई करौ हाथ तुम्हारे लाज॥