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सुनों जिन्दगी / धीरज श्रीवास्तव

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पल भर ठहरो,सुनो जिन्दगी,यूँ मत जाओ छोड़।
थोड़ा सा तुम साथ निभा दो,बहुत कठिन है मोड़।


वादे अभी निभाने हैं कुछ
प्रेम तराने गाने हैं !
उलझे - उलझे सब धागे हैं
जो हमको सुलझाने हैं !

आओ मिलकर टूटे बंधन चलो पुन: दे जोड़ ।
पल भर ठहरो,सुनो जिन्दगी,यूँ मत जाओ छोड़।

माँ के हाथों से रोटी के
और निवाले खाने थे !
बाकी था घर अभी बनाना
काम कई निपटाने थे !

फर्ज,प्यार सब अंदर बैठे,देखो रहे झिंझोड़।
पल भर ठहरो,सुनो जिन्दगी,यूँ मत जाओ छोड़।

किसने मैली कर डाली है
पतित पावनी माँ गंगा !
किसने घोला जहर हवा में
भड़काया किसने दंगा ?

धर्म सेतु का चलो देख लें,कौन रहा है तोड़।
पल भर ठहरो, सुनो जिन्दगी,यूँ मत जाओ छोड़।