भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुनो मधुमालती ! / अर्पिता राठौर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुनो मधुमालती !

मैं
चाहती हूँ कि
सहजता बनी रहे,

जो दे पाए सिर्फ़
मुझे साहस
बदलने का

बिल्कुल वैसे
जैसे तुम

रात में महकी हुई
गुलाबी,
सुबह हो जाती हो
फिर सफ़ेद…