Last modified on 6 मई 2008, at 02:40

सुभग ताराभरण पहने... / कालिदास

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: कालिदास  » संग्रह: ऋतुसंहार‍
»  सुभग ताराभरण पहने...
प्रिये ! आई शरद लो वर!

सुभग ताराभरण पहने

मुक्त घन अवरोध से अब

चंन्द्र वदनी, अमल ज्योत्सना

के दुकूलो में रुचिर सज

मुग्ध प्रमदा यामिनी

संवर्धित है प्रति दिवस त्वर
प्रिये ! आई शरद लो वर!