Last modified on 22 दिसम्बर 2007, at 16:38

सुहाना सफ़र और यह मौसम हसीं / शैलेन्द्र

सुहाना सफ़र और ये मौसम हंसीं (२)
हमें डर है हम खो न जाएं कहीं
सुहाना सफ़र ...

ये कौन हँसता है फूलों में छूप कर
बहार बेचैन है किसकी धुन पर - (२)
कहीं गुमगुम, कहीं रुमझुम, के जैसे नाचे ज़मीं
सुहाना सफ़र ...

ये गोरी नदियों का चलना उछलकर
के जैसे अल्हड़ चले पी से मिलकर - (२)
प्यारे प्यारे ये नज़ारे निखरे हैं हर कहीं
सुहाना सफ़र ...

वो आसमाँ झुक रहा है ज़मीं पर
ये मिलन हमने देखा यहीं पर - (२)
मेरी दुनिया, मेरे सपने, मिलेंगे शायद यहीं
सुहाना सफ़र ...