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सूखती आँखों की पलकें / रोहित रूसिया

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सूखती
आँखों की पलकें
ढूँढती हैं
एक तिनके का सहारा

झुक गए
अरमान सारे
एक डाली,
बोझ की क्या आ गयी
भूल बैठे
खुद को भी
कैसी ये
अँधियारी-सी
इतनी छा गई
कौन भीतर कर रहा
इतना जतन
उठ जाऊँ मैं
फिर से दोबारा

बज रहा है
गीत कोई
हाँ निरंतर
गूँजता है कान में
इक मुसाफिर
है भटकता
जूझता है
मेरे ही
मन प्राण में
हो गए
सब पार
मेरा हाथ थामे
पर नहीं पाता
मैं ख़ुद से ही किनारा