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सूरज –चंदा दौड़ लगाते / उषा यादव

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सूरज दौड़ लगाता दिन-भर।
और चंद्रमा रात-रात भर।
पर मैं ज्यादा खेलूँ-दौड़ूँ
बिना बात पीट जाता अक्सर।

माँ, मेरे थोड़े ऊधम से,
तुमको होता है सिर दर्द।
सूरज-चंदा जब देखो तब,
नभ में खूब उड़ाते गर्द।

तुमने कभी न देखे होंगे,
उन दोनों के खिचते कान।
मुँह लटकाए बैठे हों वे,
होमवर्क खाता हो जान।

क्या किस्मत है, सिर्फ दौड़कर
जग में पाते ऊँचा मान।
चंदा-सूरज दौड़ लगाते,
मैं जबरन पढ़ाई में ध्यान।