धूप
माँ की हँसी के प्रतिबिम्ब-सी शिशु-वदन पर-
हुई भासित
नये चीड़ों से कँटीली पार की गिरि-शृंखला पर :
रीति :
मन पर वेदना के बिना,
तर्कातीत, बस स्वीकार से ही सिहर कर
बोला :
'नहीं, फिर आना नहीं होगा।'
सिग्तुना (स्वीडन), 24 जून, 1955
धूप
माँ की हँसी के प्रतिबिम्ब-सी शिशु-वदन पर-
हुई भासित
नये चीड़ों से कँटीली पार की गिरि-शृंखला पर :
रीति :
मन पर वेदना के बिना,
तर्कातीत, बस स्वीकार से ही सिहर कर
बोला :
'नहीं, फिर आना नहीं होगा।'
सिग्तुना (स्वीडन), 24 जून, 1955