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सृजन और अनुवाद / विपिनकुमार अग्रवाल
Kavita Kosh से
सृजन और अनुवाद के बीच
स्थिति बड़ी अजब सी होती है
कुछ सिर के बाल बढ़े और कुछ
दाढ़ी बढ़ी सी होती है
(रचनाकाल :1955)