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सृष्टि का आधार / संजीव 'शशि'
Kavita Kosh से
ममतामयी करुणामयी,
हो सृष्टि का आधार तुम।
संसार सागर में सदा,
हो नाव तुम, पतवार तुम।।
पीड़ा सही देकर जनम,
ममता लुटायी लाल पर।
राखी मिली तुम से हमें,
पाया तिलक है भाल पर।
बन बेटियाँ माँ-बाप का,
करती रहीं मनुहार तुम।।
जब अजनबी के साथ में,
अनजान पथ पर चल पड़ीं।
हँसकर सहे सुख दुख सभी,
तुम साथ में हर पल खड़ीं।
पति को सदा कहती रहीं,
मेरा सकल संसार तुम।।
इस सृष्टि चक्र की कल्पना,
तुम बिन कभी संभव नहीं।
तुम तो स्वयं में पूर्ण हो,
तुम बिन अधूरे हम सभी।
पाया धरा ने ईश से,
सबसे बड़ा उपहार तुम।।