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सोच में सच चमकने लगे / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
सोच में सच चमकने लगे ।
जिंदगी फिर सँवरने लगे।।
चोट लगती रहे जख्म पर
घाव क्यों ना कसकने लगे।।
जब उठा ली हैं तलवार तो
मौत से हम क्यों डरने लगे।।
मार देना ना अब कोख में
बेटियाँ पुत्र कहने लगे।।
तितलियाँ सब कहीं खो गयीं
फूल भी आहें भरने लगे।।
अब कलुष डालना छोड़ दो
कूप, वापी सिसकने लगे।।
क्या करेगा अंधेरा अगर
द्वार हर दीप जलने लगे।।