भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सोना के ढकनी में हरदी परोसल / मगही
Kavita Kosh से
मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
सोना के ढकनी<ref>मिट्टी का छोटा ढक्कन, छोटा ढकना</ref> में हरदी परोसल<ref>परसी हुई, रखी हुई</ref>।
उपरे<ref>ऊपरी भाग में। अर्थात्, ढकनी में हल्दी रखी हुई है, उसके ऊपर दूबों का गुच्छा है।</ref> लहलही दूभ<ref>दूब, दूर्वादल</ref> हो, सिरवा<ref>सिर के ऊपर</ref> हरदी चढ़ावे॥1॥
पहिले चढ़ावे बराम्हन अप्पन<ref>अपना</ref>।
तब सकल परिवार हो, सिरवा हरदी चढ़ावे।
सोना के ढकनी में हरदी परोसन।
उपरे लहलही दूभ हो, सिरवा हरदी चढ़ावे॥2॥
पहिले चढ़ावे बाबा जे अप्पन।
तब सकल परिवार हो, सिरवा हरदी चढ़ावे॥3॥
पहिले चढ़ावे चच्चा जे अप्पन।
तब सकल परिवार हो, सिरवा हरदी चढ़ावे॥4॥
शब्दार्थ
<references/>