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सोने का आदमी / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
इस आदमी के दाँत सोने के हैं
गले में है सोने की जंज़ीर
अंगुलियों में सोने की नगदार अंगूठियाँ
यह मुक़म्मल सोने का बना हुआ आदमी है
जब हँसता है दिखाई पड़ती है सोने की चमक
यह हमारी दुनिया का आदमी नहीं है
किसने मढ़ा है इसके दाँत में सोना
इस आदमी को सिर से पाँव तक
किया है सोने से लैस
क्या इस आदमी के पास सोने की खान है ?
या वह हमारी नींद से चुराता है सोना और
अपनी देह पर पहन लेता है
देखो, वह हँस रहा है
उसके जबड़े खान की तरह फैल गए हैं
लोग अवाक हैं
एक साथ इतने सोने के दाँत देखकर
और चुपके-चुपके सबकी रात से
ग़ायब हो रहा है सोना