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सौप चला सपने, तुम्हारे / अमरेन्द्र

सौप चला सपने, तुम्हारे मैं हाथ में
दुनिया को कहना मत बातों-ही-बात में।

दुनिया तो सपने के सीने में छेद करे
गंगा की, यमुना की लहरों में भेद करे
पीतल का पानी है सोने के पात में।

मेरे इन सपनों में सागर है चाहों का
पर्वत की नींद लिए सोया, सुख बाहों का
क्षण में सौ गीत मधुर भर जाए गात में।

मैंने जिन सपनों को आँखों में पाला है
आज तुम्हें देता हूँ, बरसों सम्हाला है
रखना तुम इनको, ज्यों साथी हो साथ में।

आँखों में वासन्ती नींदों को लायेंगे
चढ़ कर इन सपनों पर हम भी कल आयेंगे
खोले ही रखना तुम द्वार सभी रात में।