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सौ दिन / मोहन राणा
Kavita Kosh से
और यह सदी यह बरस
यह पल जिसमें लिखे जा रहा हूँ मैं ये शब्द
बीत जाएँगे
पर ये शब्द ही लौटाएँगे मुझे और तुम्हें एक साथ
कभी अकेले
उतरती हुई रात के गुमसुम इस पहर में
प्रतीक्षा करते हुए इसके बीतने की
इसके चले जाने के
पर कहीं और भी न जाऊँगा मैं
माचिस की डिबिया में अंतिम
सौ तिल्लियाँ हैं ये सौ दिन
इन्हें बचा के रख लूँ कभी सोचता हूँ
सदी को बीतना ही है