भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्त्रीविहीन रेल का डिब्बा / विश्वनाथप्रसाद तिवारी
Kavita Kosh से
क्या स्त्रियों ने बन्द कर दीं हैं यात्राएँ?
बाप रे, इतना लम्बा डिब्बा
और इतना मनहूस?
सौन्दर्य प्रतियोगिताओं में
या विज्ञापनों में
कोठों पर
तन्दूरों में
या शमशानों में?
कैसे पहुँचेगी यह गाड़ी सही-सलामत
स्त्री के बिना?