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स्त्री संवेदना की महानदी है / शिव कुशवाहा
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करुणा के उत्स की पहली कलगियाँ
स्त्री के अस्तित्व के साथ ही अवतरित हुई
धरती की उर्वरा कोख से फूटी नई कोपल की मानिंद
स्त्री की कोख से ही जन्में सबसे पहले
वेदना के अनकहे आख्यान
स्त्री प्रेम की सुकोमल भावना से अभिसिक्त
खोजती है एक मुक्कमल रास्ता
वह अंधेरे में रोशनी की तलाश करती हुई
बढ़ रही है दुनिया के अंतिम छोर पर
जहाँ सिसक रहे हैं कविता के बहुआयामी शब्द
अपने जीवन के अलिखित दस्तावेज
सहेज लेती है अन्तस् के किसी कोने में
और वेदना का महाकाव्य रचते हुए
समेट लेती है पूरी दुनिया को अपने आँचल में
वह स्नेह की असीम गहराइयों में उतरकर
छाँटती है जीवन की उदासियाँ
स्त्री केवल भाव नहीं है,
वह संवेदना कि महानदी है
जो प्रवाहित हो रही है अंतस्तल में चेतना बनकर...