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स्थितियाँ और द्वन्द्व / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
निश्चिन्त भी, भयभीत भी !
यह ज़िन्दगी जब दाँव पर,
संघर्ष है प्रति पाँव पर,
नव भैरवी भी बज रही,
रुकना न सम्भव है कहीं
है हार भी औ’ जीत भी !
निश्चिन्त भी, भयभीत भी !
हम सुन रहे हैं राग सब
अनुराग और विराग सब
कोई बुलाता — लौट आ,
कोई सजाता कह, ‘विदा !’
रोदन करुण भी, गीत भी !
निश्चिन्त भी, भयभीत भी !
शिव में अशिव आभास भी,
छलना जहाँ — विश्वास भी,
अभिशाप भी वरदान है,
मिट्टी निरीह महान है !
अपवित्र और पुनीत भी !
निश्चिन्त भी, भयभीत भी !
ललकारता है कौन यह ?
पुचकारता है कौन यह ?
मानव विरोधी द्वन्द्व में,
मानव सदा आनन्द में !
यह शत्रु भी है मीत भी !
निश्चिन्त भी, भयभीत भी !