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स्वाद शहद-सा मीठा जी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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मुँह में बार-बार दे लेते,
भैयनलाल अँगूठा जी।
अभी-अभी था मुंह से खींचा,
था गीला तो साफ किया।
पहले तो डाँटा था मां ने,
फिर बोली जा माफ किया।
अब बेटे मुँह में मत देना,
गन्दा-गन्दा जूठा जी।
चुलबुल नटखट भैयन को पर,
मजा अँगूठे में आता।
लाख निकालो मुँह से बाहर,
फिर-फिर से भीतर जाता।
झूठ मूठ गुस्सा हो मां ने,
एक बार फिर खींचा जी।
अब तो मचले, रोए भैयन,
माँ ने की हुड़कातानी।
रोका क्यों मस्ती करने से,
क्यों रोका मनमानी से।
रोकर बोले चखो अँगूठा,
स्वाद शहद से मीठा जी।