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स्वामिनी हे बृषभानु-दुलारि / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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स्वामिनी हे बृषभानु-दुलारि!
कृष्णप्रिया, कृष्णगतप्राणा, कृष्णा, कीर्तिकुमारि॥
नित्य निकुंजेस्वरि, रासेस्वरि, रसमयि, रस-आधार।
परम रसिक रसराजाकर्षिनि, उज्ज्वल-रस की धार॥
हरिप्रिया, अहलादिनि, हरि-लीला-जीवन की मूल।
मोहि बनाय राखु निसि-दिन निज पावन पद की धूल॥