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हत्यारे जब गांधी होते हैं / योगेंद्र कृष्णा

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हत्यारे जब गांधी होते हैं
वे तुम्हें ऐसे नहीं मारते
वे नहीं करते तुमसे
सत्य का कोई आग्रह

वे अपने झूठ पर चढ़ा लेते हैं
तुम्हारे ही सपनों के रंग
और इस तरह बिना झूठ बोले
तुमसे छुपा लेते हैं तुम्हारा सच

वे तुम्हें आजाद नहीं करते
आजादी की अदृश्य जादुई
जंजीरों से तुम्हें बांध लेते हैं

गुलामी की तुम्हारी दीवारों को
बड़ी खूबसूरती से शीशों से सजाते हैं
कि तुम आजाद दुनिया की तस्वीर
घर के भीतर चारो तरफ
आईने से झांकती
अपनी ही छवियों में तलाश लो

वे तुम्हें ऐसे नहीं मारते
प्रवेश कर जाते हैं किसी घुन की तरह
इतनी जतन से अर्जित
तुम्हारे भीतर के पर्यावरण में

बंद कर देते हैं
बाहर की दुनिया में खुलती
तुम्हारे भीतर की
तमाम खिड़कियां दरवाजे
और बड़ी चालाकी से
नष्ट कर देते हैं धीरे-धीरे
तुम्हारी आत्मा को

कुछ इस तरह
कि तुम फिर कभी
अपने अंत:करण की नहीं
केवल उनकी आवाज सुन सको

और इस तरह आत्म-विहीन
निर्वस्त्र, निर्वाक और निर्भीक
विचर सको उनकी बनाई
आभासी अपनी दुनिया में...