इक मुड़ी जीन्स में, फँस गई सीप-सी
आँधियों से भरे, एक कृत्रिम द्वीप-सी
नाखूनों में घुसी, कुछ हठी रेत-सी
पेड़ बौने लिए, बोन्साई खेत-सी
टूटी इक गिटार-सी, क्लिष्ट व्यवहार-सी
नाम भी ना रहे याद, भूले प्यार-सी
फोटो बिन फ्रेम की, बस कुशल-क्षेम-सी
बारिशों से स्थगित एक क्रिकेट गेम-सी
हाथ से ढुल गई मय ना प्याले गिरी
शाम जो रात लौटी नहीं सिरफिरी
देने में जो सरल, सस्ते इक ज्ञान-सी
भाव से हो रहित, हाय! उस गान-सी
खोल खिड़की किरण जो ना घर आ सकी
धुन ज़हन में रही ना जुबाँ पा सकी
आदतों की बनी इक गहन रेख-सी
बस जो होती बहू में ही, मीन-मेख-सी
बी.एम.आई इंडैक्स सी, बिन कमाई टैक्स-सी
जो कि पढ़ ना सके, उड़ गये फैक्स-सी
हमको ऐसे मिली कि हँसी आ गई
फिर गले से लगाया तो शर्मा गई
ज़िंदगी प्यार के झूठे ई-मेल सी
पुल पे आई विलम्बित थकी रेल सी !