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हमने छोड़ दिए हैं गाँव / पूनम तुषामड़
Kavita Kosh से
हमने छोड़ दिए हैं गाँव
तोड़ दिया है नाता
गाँव के कुएँ, तालाब
मंदिर और चौपाल से ।
जो अक्सर हमें
मुँह चिढ़ाते,
नीच बताते और कराते हमें
जाति का अहसास
हमने छोड़ दिए हैं गाँव
ताकि जानो तुम
चिलचिलाती गर्मी में
गर्म हवाओं के बीच
लगातार
अधनंगे, आधे पेट श्रम करना
और
दो जून की रोटी कमाना
कितना कठिन है?
हमने छोड़ दिए हैं गाँव
ताकि पड़ जाएँ
तुम्हारे गोदामों पर ताले
लग जाए घुन
तुम्हारी बहियों को
फसलों को बचाने
की कवायद में
तुम्हारे हाथ करने लगें
बुआई, कटाई और पिनाई
और तब टूट कर बिखर जाए
तुम्हारा जातीय अहं
और तुम जानो
कि श्रम क्या है?