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हमने दिलवर में जाने क्या देखा / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
हमने दिलवर में जाने क्या देखा।
दिल में एहसास-सा जगा देखा॥
लोग बातें बना गये कितनी
रूप था हमने जो सुना देखा॥
कर रहे इंकलाब की बातें
पर किसी में न हौसला देखा॥
एक उम्मीद की तलब सब को
जिसको देखा बुझा-बुझा देखा॥
जाने वाला न लौट कर आता
फिर भी उसका ही रास्ता देखा॥
है तलबगार सब वफाओं के
जो भी देखा वह बेवफ़ा देखा॥
दूसरों पर उठी रही उँगली
पर किसी ने न आइना देखा॥