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हमारी शायरी लश्कर नहीं है / विजय वाते
Kavita Kosh से
किसी के नाम का पत्थर नहीं है।
हमारी शायरी लश्कर नहीं है।
ज़मी पर आज सूरज चल रहा है,
मगर होता तो ये, अक्सर नहीं है।
विरासत है यक़ीक़न पास इनके,
नई पीढ़ी कहीं कमतर नहीं है।
कहूँ कुछ तल्ख़ बातें सोचता हूँ,
मगर इस का अभी अवसर नहीं है।
'विजय' के शे'र पर यूँ दाद देना,
ज़रा अच्छा तो है बेहतर नहीं है।