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हमें हर रात यही बेकली सतायेगी / रंजना वर्मा

हमें हर रात यही बेकली सतायेगी
बिना तुम्हारे हमें नींद नहीं आयेगी

शबे फ़िराक़ मुश्किलों से कटा करती है
तुम्हारी याद हमें रात भर रुलायेगी

तमाम रात हैं भटका किये सहरा सहरा
थकेंगे पाँव तो फिर नींद भी आ जायेगी

मुसीबतों में सभी फेर मुँह चले जाते
तुम्हारा साथ तो उम्मीद ही निभायेगी

कहा करता है सच ही आईना ये अब समझे
अना से पूछिये सच्चाइयाँ बतायेगी
 
तमाम उम्र वस्ल की तो जुस्तजू ही रही
तुम्हे पाया ही नहीं मौत चली आयेगी

लुटाते जान दूसरों के लिये जो अपनी
यनहीँ की मौत फ़िज़ा अश्क़ भी बहायेगी