भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमेशा रहल नेह दियना बुताइल / श्रद्धानन्द पाण्डेय
Kavita Kosh से
हमेशा रहल नेह दियना बुताइल,
जिनिगिया ई अबले अन्हारे में बीतल।
हिया में रहल पीर अँखियनि में पानी,
न जियरा के केहू सकल सुनि कहानी,
न ओठनि प आइल कबो बात मन में,
जिनिगिया ई सोचे-विचारे में बीतल।
न आइल कबो ले संदेशा बदरिया,
रहल ताकते नीर भरले नजरिया,
न आइल घरे मीत मनवाँ के कबहूँ,
जिनिगिया ई रहिया निहारे में बीतल।
गइल बीत सावन ना गवलीं कजरिया,
बहल ना कबो मन्द शीतल बयरिया,
न साधनि के हमरा कबो मेघ बरिसल
जिनिगिया ई अबले सुखारे में बीतल।