Last modified on 2 जून 2024, at 00:05

हम समझदार लड़कियाँ थीं / शिवांगी गोयल

हम समझदार लड़कियाँ थीं
हमने स्त्रीवाद पढ़ा था
हमें ख़ुद पर घमण्ड रहा दुनिया बदलने का
हमने घरों से बग़ावत करके प्यार किया था
विजातीय लड़कों से प्यार किया था
और प्रेम में जीने मरने की कसमें खायी थीं
हमने ख़ुद से वायदे किये कि सच्चे प्यार के लिए
हम ज़माने की रस्में तोड़ देंगी
सगे-सम्बन्धी, घर-बार सब छोड़ देंगी
"प्रेम तो बग़ावत का दूसरा नाम है"

फिर एक शाम हमारे पिता ने हमें बैठा कर समझाया
कि प्यार से घर नहीं चलते, पेट नहीं भरते
हर त्यौहार पर नए कपड़े प्यार से नहीं, पैसों से आते हैं
और आख़िर में कहा, "जब तक जी रहा हूँ, ब्याह कर लो,
मर गया तो दहेज के भी पैसे ना जुटेंगे!"

हम समझदार लड़कियाँ थीं, हमने सब सिर झुका के सुना
हमने घर में प्रेमी का नाम नहीं लिया
हमने अपने प्रेमियों के आगे चार आँसू बहाये, माफ़ी माँगी, विदा ली;
हमने सरकारी मुलाजिमों से शादी रचा ली
ये हमारा त्याग था, हमारी महानता थी
हमने ये फ़ैसला अपने माँ-बाप के लिए लिया था
"प्रेम तो त्याग का दूसरा नाम है"।