हरदम रहीने-कशमकशे-दस्ते-यार है
चिलमन के तार, किसके गरेबाँ का तार है
क्या कीजिए कि ताक़ते-नज़्ज़ार1 ही नहीं
जितने वह बेहिजाब2 हैं, हम शर्मसार3 हैं
उम्रे-दराज़4 की है रक़ीबों5 को आरज़ू6
देखो ज़माने-हिज्र के उम्मीदवार हैं
छाती से मैं लगाए रखूँ क्यों न रात-दिन
यह दाग़-ओ-ज़ख़्म दिल मेरे यादगार हैं
क्योंकर न रहम हाल पे आये शबे-विसाल
अंदोह-ओ-दर्द7 रोज़ मुसीबत के यार हैं
कैसे गिनें रक़ीब के ताना-ए-अक़रबा8
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हज़ार हैं
शब्दार्थ:
1. देखने की ताक़त, 2. बेशर्म, 3. शर्मिंदगी, 4. दीर्घायु, 5. शत्रु, 6. चाह, 7. दुख और पीड़ा, 8. दोस्तों के शिकवे