भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हरिनाम आनंद / शब्द प्रकाश / धरनीदास
Kavita Kosh से
चंचल चोर फिरै चहुंओर, ओ साइ रहै पहरो जिमि ठाढ़ो।
जा सन वैर विरोध भवो, परबोध भयो सोइ सेवक गाढ़ो॥
काल हु तो सो दयाल भवो, धरनी मन मनो है मोर अखाढ़ो।
जादिन ते हरिनाम बसो हिय, ता दिन ते उर आनंद बाढ़ो॥14॥