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हरियाला सावन ढोल बजाता आया रे / शैलेन्द्र
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हरियाला सावन ढोल बजाता आया
हरियाला सावन ढोल बजाता आया
मन के मोर नचाता आया
मिट्टी में जान जगाता आया
धरती पहनेगी हरी चुनरिया
बनके दुल्हनिया
एक अगन बुझी एक अगन लगी
मन मगन हुआ एक लगन लगी
बैठ न तू मन मारे
आ गगन तले देख पवन चले
आजा मिल-जुल के गाएँ
जीवन क गीत नया
ऐसे बीज बिछा रे
सुख चैन उगे दुख दर्द मिटे
नैनों में नाचे रे
सपनों का धान हरा
(फ़िल्म ’दो बीघा ज़मीन’ के लिए)