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हर गली में ढूँढ़ा तेरा निशाँ/ विनय प्रजापति 'नज़र'

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लेखन वर्ष: 2004

हर गली में ढूँढ़ा तेरा निशाँ
मैं भटकता रहा यहाँ-वहाँ

बेताब है हर लम्हा नज़र
उतरे न इश्क़ का ज़हर

प्यास है तेरे दीदार की
चाहत है तेरे एतबार की

रुख़ पे ज़ुल्फ़ परेशान है
अधूरी तेरी-मेरी दास्तान है

तस्वीरें तेरी चुनता रहा
रोज़ नये ख़ाब बुनता रहा

तस्वीरों से बात करता हूँ मैं
प्यार तुमसे करता हूँ मैं

संगदिल से इल्तिजा की
ख़ुदा से तेरे लिए दुआ की

किस दर पे न माँगा तुम्हें
अब तक क्यों न पाया तुम्हें