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हर बात मानूँ जरूरी तो नहीं / असंगघोष

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बेहतर
जिन्दगी के लिए
यह बेहद जरूरी है
कि मैं
तुम्हारी हर बात सुनूँ
तुम्हारी हर बात मानूँ
और क्या मानूँ
क्या न मानूँ
यह मैं
तय करूँ या तुम
किसी ना किसी को
तय तो करना ही होगा
वह चाहे
सीमा रेखा ही
क्यों न लाँघती हो और
फिर बातें
इसके आर या पार
की ही क्यों न हों
बातें तो बातें हैं
समय बीत जाएगा
पर जेहन में
घर कर
बस ही जाएँगी
तुम्हारी बातें
वे चाहे अच्छी हों
या बुरी
बातें तो हैं ही
तुम्हारी हर बात मानूँ
यह जरूरी तो नहीं
भले ही वे बातें
मेरे या तुम्हारे भले
की ही क्यों न हों
बातें तो बातें ही हैं
पर बातों का होना
जरूरी है
तभी तो
उनमें कुछ सच्चाई होगी
ढेर सारा फरेब और
झूठ भी ओढ़े रहती हैं
ये बातें
तुम करती रहो
जितनी करनी हो बातें
मैं सब मानूँ
यह जरूरी तो नहीं।