Last modified on 23 जून 2017, at 14:30

हर समय हर बात तुमसे क्या कहूँ मैं? / बलबीर सिंह 'रंग'

हर समय हर बात तुमसे क्या कहूँ मैं?

हर कोई हर बात कह पाता नहीं है,
और हर आघात सह पाता नहीं है,
क्या करूँ मजबूर है जलयान मेरा
हर लहर के साथ बह पाता नहीं है।
आज भी इस प्रश्न को लेकर उठा है, सिंध में उत्पात,

तुमसे क्या कहूँ मैं?
हर समय हर बात तुमसे क्या कहूँ मैं?

कौन जाने कब कहाँ परिचय हुआ था,
एक नूतन दृष्टि का अभिनय हुआ था,
अनकहे, अनबूझ वचनों की शरण में
रूप के संग प्रीति का परिणय हुआ था।
कब बँधा कंगन, कहाँ बाजी बधाई, कब गई बारात,

तुमसे क्या कहूँ मैं?
हर समय हर बात तुमसे क्या कहूँ मैं?

एक पल भी कल्पना की गति न ठहरी,
साधना करते रहे थे, शब्द प्रहरी,
तारकों ने सेज सपनों की सजा दी
यामिनी को आ गई कब नींद गहरी।
कब तलक जागी प्रतीक्षा की पुजारिन, हो गया कब प्रात,

तुमसे क्या कहूँ मैं?
हर समय हर बात तुमसे क्या कहूँ मैं?