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हवाएँ नहीं डरतीं / चन्द्र प्रकाश श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
प्रेम-पत्र लिखने वाले को
सूली पर चढ़ा दो
प्रेम-गीत गाने वाले को
तुम चाहे ज़िंदा जला दो
समस्त पाण्डुलिपियाँ महासागर में डुबो दो
फिर भी रोक नहीं पाओगे तुम
गतिमान शब्दध्वनियों को
गमकती हवाओं को
हवाएँ नहीं डरतीं आतताई संगीनों से
धुवाँ-धुवाँ बन जाएँगे शब्द
लिपियाँ तैरेंगी
महासागर की लहरों पर
उड़ेंगे श्वेत कबूतर
क्षितिज के इस छोर से उस छोर तक