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हसरत ए दीद मुसीबत ही सही / ज़िया फतेहाबादी
Kavita Kosh से
हसरत ए दीद मुसीबत ही सही ।
हमें ग़म खाने की आदत ही सही ।
दश्त-ओ सहरा कोई दोज़ख तो नहीं,
तेरा कूचा मेरी जन्नत ही सही ।
बेअसर मेरी दुआएँ क्यूँ हों,
लादवा दर्द-ए मुहब्बत ही सही ।
ज़िन्दगी मौत से बेहतर है मगर,
दो घड़ी के लिए राहत ही सही ।
अमन से बैर नहीं रखते हम,
शोरिशें दाख़िल-ए फ़ितरत ही सही ।
सर कटाने की मगर बात कहाँ,
सर में सौदा-ए शहादत ही सही ।
देख कर इश्क ’ज़िया’ बढ़ता है,
हुस्न तस्वीर-ए नज़ाकत ही सही ।