भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हसीना बेग़म / वीरा
Kavita Kosh से
दिन भर
हसीना बेगम के बच्चे
एक-एक बूंद टपकाते
नल के नीचे भरे
एक टूटे अल्मूनियम के
बर्तन की
रखवाली
नागमणि की तरह करते हैं
यह सोचते हुए कि
माँ इस पानी से ख़ाना पकाएगी
दिन भर
हसीना बेगम
बंगलों के सामने
पाइप लाईन डाली जाने
के लिए
मिट्टी खोदती है
( रचनाकाल : 1978)