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हांडी में पड़े सपने / हरप्रीत कौर
Kavita Kosh से
मेरा प्रेम लौटता है
वापस मुझ तक
जैसे लौटती हैं गाये
हर रोज़
देहात के अपने घर
मुँह बिसूरे
हांडी में पड़े रहते हैं सपने
सपने नहीं चाहते कि
प्रेम हर रोज़ लौट आए
वापस मुझ तक
सपने चाहते हैं
भय-मुक्त होना
इसलिए वे डरते हैं
प्रेम से
प्रेम जब-जब उतरता है
सपनों की देह में
देह ज़हरीली हो जाती है
सपनों की