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हाइकु -2 / विभा रानी श्रीवास्तव
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माँ का बनाया
याद आया स्वस्तिक-
लक्ष्मी पूजन।
जमीं पै फैली
जवाहर की टोपी-
श्रृंग पे बर्फ।
धरा आँचल
अनेक चाँद बने-
सफेद सोना ।
दीन यूँ हर्षा
ढ़ेरों भू चाँद मिले-
सफेद सोना।
भड़भुजनी
भणसार जलाये -
धुंध में रवि।
उड़ा गुलाल
धनक बनी धरा
गगन लाल।
स्वागत भोज-
नक्काशी माँ अक्स पे
इंद्रधनुषी।
आम के गुच्छे-
क्षितिज पै छलके
केसरी धूप।
श्यामा लावण्य
नकफूल का हीरा-
मेघ में चाँद।
कुंभ का मेला–
डुबकी लगा रहे
प्रवासी पक्षी।