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हाइकु 26 / लक्ष्मीनारायण रंगा

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नान्हीं कांकरी
उठा देवै तूफाण
पाणी रै मन


बंदूकां झालै
बै हाथ जिका कनैं
रोटी ना काम


सारो विकास
सभ्यता‘र संस्कृति
पेट रै पाण