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हाइकु 63 / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
जे नीं बचाई
पाणी री धार, बै‘सी
रिगत धार
सक री सिळी
इत्ती गै‘री चुभै कै
ता-उम्र सुळै
थूं जद-जद
मुळकै, खिलै फूल
गुलाब-डाळ