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हाथ लगाना रे / राजेश गोयल
Kavita Kosh से
छुई मुई मेरा मन हुआ, ना हाथ लगाना रे।
बसन्त मेरे द्वारे आया, ना हँसी उड़ाना रे॥
पुरबाई ब्यार आई,
आहन किसे तुम्हारे।
गीत गुंजित हो गये,
मधुर होठ पुकारे॥
तिनके बहुत सहारे, ना हाथ किनारा रे।
छुई मुई मेरा मन हुआ, ना हाथ लगाना रे।
वीणा में मुखरित हो आये,
कितने गीत तुम्हारे।
एक वेदना मुखरित हो गई,
सारे रीत तुम्हारे ॥
सखियाँ छूटी, गलियाँ भूली, अब देश बिराना रे।
छुई मुई मेरा मन हुआ, ना हाथ लगाना रे।
धरती पर उतरा बसन्त,
पीली हुई धरा ।
पीली ओढ़ चुनरिया निकली,
पीले हाथ धरा॥
फागुन मेरे आँगन आया, केसू रंग उड़ाना रे।
छुई मुई मेरा मन हुआ, ना हाथ लगाना रे।