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हार-जीत / रंजना सिंह ‘अंगवाणी बीहट’
Kavita Kosh से
कोई जीत जाता है ,
तो कोई हार जाता है।
इसी से जीवन में लोग,
कुछ सीख जाता है।
जश्न जीत का जब हो
मन मगरूर नहीं होना।
अपनी हार से अंतर्घट में,
नई इक बीज को बोना।
किसी के दिलों पर यदि
राज करना हो जग में।
पहले शब्द मर्यादित कर,
अहं को रौंद पग-पग में।
यह जग एक है रंगमंच,
हर इंसान है अभिनेता।
मिलता है वही सब इसे,
जो परमेश्वर है देता।
चढ़ा मुखौटा कब तक,
दोहरी मुखड़ा दिखेगा।
ये जनता सब है जानती,
पल में नोंच फेंकेगा।
अपने दम पर लोकप्रिय,
बनना नहीं है आसान।
जनता का जो मन जीते
वह जन है इत्र समान।