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हार / राजराजेश्वरी देवी ‘नलिनी’

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कुसुमों के कमनीय कलित कुंजो के कुसुम चयनकर नाथ।
मृदुल माल एक रुचिर बनायी रच-रचकर निज कम्पित हाथ॥
पूजा का कुछ साज नहीं है देव! आह! दुखिया के पास।
किन्तु हार, में संचित है मम सरल स्नेह की सरस सुबास॥
इस अनुराग-माल में गुम्फित है मेरा जीवन सुकुमार।
आओ! देव! पिन्हादे ‘नलिनी’ पा जावे जीवन का सार॥