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हाव भाव विविध दिखावै भली भाँतिन सों / बेनी
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हाव भाव विविध दिखावै भली भाँतिन सों,
मिलत न रतिदान जोग सँग जामिनी।
सुबरन भूषन सँवारे ते विफल होत,
जाहिर किये ते हँसैं नर गजगामिनी।
रहै मन मारे लाज लागत उघारे बात,
मन पछितात न कहत कहूँ भामिनी।
बेनी कवि कहैं बड़े पापन तें होत दोऊ,
सूम को सुकवि औ नपुँसक को कामिनी।
बेनी का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।