भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाहाकार / बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा ‘बिन्दु’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बूंद – बूंद को तरसोगे तुम
पानी – पानी को तड़पेगा ।
जब जंगल ही काट रहे तो
ये चमन कहाँ से महकेगा ।।
रहने दिये न रेत नदी मैं
बुरा हाल है इस सदी में ।
भूधर को तोड़ा है तुमने
गंदगी डाल दिये बदी में ।।
पर्यावरण, तुम राग अलापो
दिनों – रात पैसे को छापो ।
दौलत खाना, पैसा पीना
कितनी गरमी ये तो भापो ।।
मौसम का मिजाज है बदला
पूरी दुनिया इससे दहला ।
सलिल सतह से इतना भागा
क्यों ईमान न अपना जागा ।।
कब तक ऐसे काम चलेगा
इंसा को इंसान छलेगा ।
माया – ममता रोना हँसना
ऐसे संकट नहीं टलेगा ।।
कइ सम्मेलन उठक- बैठकी
बात करे सब अपने मन की ।
सरकार की ये जिम्मेदारी
चिंता करो अपने वतन की ।।
अब तो ले लो जिम्मेदारी
निभाओ अपनी व्यभिचारी।
पढ़ – लिखकर बेकार बन गये
काम तो करो कुछ उपकारी।।