भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाहाहाहा हाहाहाहा / दिविक रमेश
Kavita Kosh से
गाय घर पर आना जी
आकर रोटी खाना जी
हमको दूध पिलाना जी
अपनी पूँछ हिलाना जी
अपने कान हिलाना जी
मक्खी खूब उड़ाना जी
हमको खूब हँसाना जी
हाहाहाहा हाहाहाहा हाहाहा।