नईं साब हम उधर फैजाबाद से नईं अई रिया था
हम तो रतलाम में चढ्या था
ये बई या छोरा म्हारा नईं
पन हम लोग दरवज्जे के नजीक
संडास से सलंग बठी गिया था कईं करां
गर्दी भोत थी टिकट हमारे कने थी
रात मां कईं मालम पड़े हजूर के रिजरब कम्पाट है
हां साब कुछ झन खूप चिल्लई रिया था
डब्बा में से चढ़ी उतरी रिया था
खूप धूम मस्ती थी सरकार
हमसे भी किया जोर से जै बोलो रे
नईं बोलते तो कईं पतो मारता पीटता उतारी देता
नईं साब अपने को नईं मालम पलेटफारम पे कईं हुयो
उतर के देखता तो अपनी या जगा भी चली जाती
फेर गाड़ी धकी तो अचानचक दग्गड़ फत्तर चलने लगा
कंसरे में से किरासन कूड़ने लगे
हमने भोत हाथ पैर जोड़े हुकम
पन हम दबी गये
मालम नईं पड़ा के कुचला के मरे
के अंगार में जल दे हजूर
हमने कभी किसी का कुछ नईं किया
में मजूरो की तलास में अमदाबाद जई रिया था काकासाब
ये बई ओर यो इसका छोरा अपने गाँव
आपके मन में सुना है भोत दया है
म्हारे जैसा बेकसूर मरने वाला के लिए हजूर
इसी कारन अरज करने हाजर हो गये दासाब
हमारी भी कुछ सुनवाई सनाखत हो
कुछ तो इंसाप हो मायबाप
हमारी बात कोई नईं बोलता
हमें तो अबार तक मालम नईं के बात कईं थी
हम तो बसे बोगी के फरस पर जरा सी जगा में बठी गया था मालक
इत्ती बड़ी गाड़ी थी सरकार हमें जाना मो भोत दूर नईं था
चार कलाक में अमदाबाद पोंहची जाता हुकम