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हिन्द के जयकार / बैद्यनाथ पाण्डेय ‘कोमल’

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धरती नभ में गूँज रहल बा जय-जय हिन्दुस्तान के।
देश-देश बा लेत नाम आदर से देश महान के।
इहे भूमि ह जहाँ ईश के
भइल भूमि ह जहाँ राम पुरूषोत्तम
के भी प्यार रहे;
इहें जैन श्री महावीर से
जैन धर्म के नाम भइल;
इहें बुद्ध, राजा अशोक से
बौद्ध धर्म आचार रहे;
इहे हिन्द ह जहाँ रहे भण्डार अपरमित ज्ञान के।
कुरूक्षेत्र के इहे भूमि ह
जहाँ युद्ध विकराल भइल;
इहे भूमि पानीपत में
जे बहल खून से लाल भइल;
वीर कर्ण के दान जहाँ रे
राजा बलि के दान रहे;
इहे हिन्द, जेकर सबके अँखियन में
ऊँचा भाल भइल;
सब कोई लोहा मानल एकर आदर-सम्मान के।
वीर भगत के जनम भूमि रे
वीर जवाहर के अधिवास;
इहवें भइल रहे बापू के
माह-माह भर के उपवास;
इहे भूमि ह जहवां पर
राजेन्द्र देव के जनम भइल,
लौह पुरुष इहवें पटेल के
रहे न कम कबहूं उल्लास;
सबके पता रहे इहँवा के बड़ बीरन के खान के।
मस्तक पर बा खड़ा हिमालय
शोभ रहल बा रे दिन रात;
उमड़ रहल बा गंगा-धारा
कंकड़-पत्थर पर इठलात;
कोरा में बा जगल राग
यमुना के रे माधुर्य भरल;
पद धोवत बा हिन्द महासागर
भारत के नित हरसात;
कबही अन्त मिल ना भारत के ऊँचा अरमान के।
मानव के का पूछ
देव-मुनि भी एकर जय गावेला;
होखे जनम अगर त होखे इहवें
इहे मनावेला;
हिन्द देश अइसन बा जेपर
सबके मन बा ललच रहल;
पक्षी-पक्षी के मुँहवों से
‘‘जय भारत’’ सुर आवेला,
उड़-उड़ गंध गइल दुनिया में भारत के उद्यान के।
धरती नभ में गूँज रहल बा जय-जय हिन्दुस्तान के?