भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हे रोम रोम में / भजन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हे रोम रोम में बसने वाले राम .
जगत के स्वामी हे अंतर्यामी .
मैं तुझसे क्या माँगू ..
भेद तेरा कोई क्या पहचाने .
जो तुझसा हो वो तुझे जाने .
तेरे किये को हम क्या देवे .
भले बुरे का नाम ..